अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं - निदा फाज़ली

Ghazal : अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
Singer : जगजीत सिंह
Poet/Shayar/Writer : निदा फाज़ली / Nida Fazli
Album/Movie : Mirage
Released : 1993

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं

पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से
वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से
किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब
चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब
सोचते रहते हैं कि किस राहगुज़र के हम हैं

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम
हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम हैं -निदा फ़ाज़ली

ग़ज़ल का आखिरी शेर जगजीत सिंह ने शामिल नहीं किया है |


Roman

apni marzi se kaha apne safar ke hum hai
rukh hawao ka jidhar ka hai udhar ke hum hai

pahle har cheez thi apni magar ab lagta hai
apne hi ghar me kisi dusre ghar ke hum hai

waqt ke sath hai mitti ka safar sadiyo tak
kisko maloom kaha ke kidhar ke hum hai

chalte rahte hai ki chalna hai musafir ka naseeb
sochte rahte hai ki rahguzar ke hum hai

gintiyo me hi gine jaate hai har dour me hum
har kalamkar ki benam khabar ke hum hai - Nida Fazli
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